कविता : मां
जब स्वयं मातृत्व सुख पाओगे
माँ ने ममता से
पलकों पर बिठाया तुमको
अहसास दिलाया तुम को
हर पल तुम्हें याद किया
पलकों को छूते ही
अहसास तुम्हारा पा
बाहों में झुलाया तुमको
जब पैर बाहर रखा
अपना अस्तित्व खोजा
तुमने पलट कर न देखा
कुछ जानना न चाहा
यह बेरूखी ऐसा व्यवहार
हृदय में गहरे जख्म कर गया
तुम नहीं जानती
तुमने कितना रूलाया उसको
उसूलों पर खरी नहीं उतरी
ना ही कभी सोचा
होती है ममता क्या
और उसकी अपेक्षाएँ क्या?
उसके मन की पीड़ा को
अभी न जान पाओगी,
समझोगी तब
जब स्वयं माँ बनोगी।