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कविता : मां


माँ-माँ जपती जाऊँ


सम्पूर्ण जगत की पालनहार,

जिसके आँचल में भरपूर प्यार,

माँ के बलिदान को देखो और उसे प्यार करो,

खुद पैरों पर खड़े होकर भी माँ कहने में शर्म न करो,

माँ है तो यह जिन्दगी नियामत है,

बिना माँ के बच्चों के लिए इस जहान में बस

कयामत ही कयामत है।

भगवान को न पूजो चाहे, माँ का सत्कार करो,

माँ ही घर की लक्ष्मी है, देवी है,

इक माँ के कारण ही दुनिया में हर खुशी है,

पूछो उनसे माँ क्या है उनके लिए

जो तरसते हैं किसी को माँ कहने के लिए।

माँ-माँ-माँ कहती यही माला जपती जाऊँ,

आँखें बंद किये हुए इस रब रूप की गहराई में उतरती जाऊँ,

यह झूठ नहीं, सच्चाई है,

जिसकी माँ है इस दुनिया में,

हर खुशी उसने पाई है।