कविता : मां
मेरी प्रेरणामयी माँ
मैंने माँ को नित्य हँसते देखा था,
जीवन की ज्योति पर जलते देखा था।
जीवन की उस एक आस में,
तृप्ति की उस एक प्यास में।
अपनी प्रेम शीलता का,
लगाया अद्वितीय मलहम।
ममता का वो अहसास,
जो उसने मुझे दिया।
बूँद-बूँद छलका कर,
उसने प्रेरित मुझे कर दिया।
अपने खून की एक-एक बूँद,
अर्पित मैं कर दूँ माँ।
तो भी उतार न पाऊँगी,
तेरा कर्ज मैं माँ।
तेरे ही कारण मैंने,
जग में पहचान है पाई।
मैं नहीं सह पाऊँगी,
एक पल भी तेरी जुदाई।