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कविता : मां पृथ्वी भी……


लघु कविता : माँ पृथ्वी भी माँ आकाश भी


पिता के जाने के बाद

इससे पहले कि

हम संभालते माँ को

उसने संभाला हमें

भरकर हम चारों को

अपनी बाहों में कहा उसने –

क्यों रोते हो

मैं जो हूँ अभी

और जो माँ अब तक पृथ्वी थी

हमारे लिए पिता रूपी

नीली छत बन गई, आकाश सी।