कविता : मां
माँ : पृथ्वी सी सरल सहज
कल सपने में आई अम्मा,
देर तलक, बतियाई अम्मा।
लाड किया, सिर हाथ फेर कर,
अखियाँ-भर मुस्काई अम्मा।
डपट, शिकायत, भोला-गुस्सा,
कर थोड़ा, सकुचाई अम्मा।
जीवन के इस गुणा-भाग से,
कभी न घबराई अम्मा।
सपने, कोशिश, उम्मीदों की,
सदा रही परछाई अम्मा।
सांझी – बाती, ठाकुर द्वारा
गीत, भजन, चौपाई अम्मा।
ज्वार, बाजरा, मक्की-रोटी,
सरसों-साग, खिलाती अम्मा।
मां, पृथ्वी-सी, सरल-सहज सी,
लोक-कथा सी, भायी अम्मा।
ईश्वर का दुख, जाने ईश्वर,
हर दुख में भी मुस्काई अम्मा।