कविता : माँ की याद


माँ की याद


माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई

पंचतारा होटलों की शान कुछ न भाई

बैरा निगोड़ा पूछ जाता किया जो मैंने कहा

सलाम झुक-झुक करके मन में टिप का लालच रहा

खाक छानी होटलों की चाहिए जो ना मिला

क्रोध में हो स्नेह किसका? कल्पना से दिल हिला

प्रेम में नहला गई जब जम के तेरी डांट खाई

माँ के हाथों की बनी जब दाल रोटी याद आई।

तेरी छाया में पली सपने बहुत देखा किए

समृद्धि सुख की दौड़ में दुख भरे दिन जी लिए

महल रेती के संजोए शांति मैं खोती रही

नींद मेरी छिन गई बस रात भर रोती रही

चैन पाया याद करके लोरी जो तूने सुनाई

माँ के हाथों से बनी जब दाल रोटी याद आई

लाभ हानि का गणित ले जिंदगी की राह में

जुट गया मित्रों से मिल प्रतियोगिता की दाह में

भटका बहुत चकाचौंध में खोखला जीवन जिया

अर्थ ही जीने का अर्थ, अनर्थ में डुबो दिया।

हर भूल पर ममता भरी तेरी हँसी सुकून लाई।