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कविता : माँ और भगवान


माँ और भगवान


मैं अपने छोटे मुख से कैसे करूँ तेरा गुणगान,

माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।

माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया,

ठुमक – ठुमक आँगन में चलकर सबका प्रेम पाया

पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण

माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।

दे मातृत्व देवकी को यशोदा की गोद सुहाई

ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई

सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान

माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।

कभी न विचलित हुई, रही सेवा में भूखी प्यासी,

समझ पुत्र को रूग्ण मनौती मनाती रही उपासी,

प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण,

माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।

हारने न दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी,

सदैव ही रहती सुत हित में सुख-दुख में महतारी।

स्वयं कष्ट सह – सह कर दिया अभय का दान,

माँ तेरी समता में फीका सा लगता भगवान।