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कविता : माँ


माँ पर कविता कैसे लिखूँ?


लिख सकती हूँ इस संसार के कण-कण पर

अतीत की गाथा पर लिख सकती हूँ,

वर्तमान के क्षण-क्षण पर,

गिरी सर-सरिता और ये झीलें

रेगिस्तान या सागर नीले

मुट्ठी में है यह ब्रह्माण्ड।

मूर्ख हो या विद्वान प्रकांड

सूरज चंदा और ये तारे

लिखकर कर दूँ एक किनारे।

इन सब पर लिख सकती हूँ

किसी भी घड़ी

पर समझ न आता

समस्या है बड़ी।

माँ पर लिख दूँ कविता कैसे?

रोक ले कोई कलम ये जैसे

माँ तेरी महिमा है अपार

पाया ना स्नेह का कगार।

दुनिया सारी तुझमें विलीन

सम्मुख तेरे सब तुच्छ-हीन

ममता का अमृत पिला दिया है

तूने हमको घोल-घोल

माँ की कोई उपमा नहीं

माँ तो है बस माँ ऐसे

माँ पर लिख दूँ कविता कैसे

कोई रोक ले कलम ये जैसे।