कविता : मनुष्यता का सार
मनुष्यता : मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘मनुष्यता’ कविता में देश-हित, परोपकार और उदारता को अपनाने की प्रेरणा दी गई है। कविता का सार इस प्रकार है :-
मनुष्य-जीवन नश्वर है। अतः मनुष्य को मृत्यु से डरना नहीं चाहिए। उसे गौरवपूर्ण जीवन जीना चाहिए और गौरवशाली मृत्यु को अपनाना चाहिए। स्वयं के लिए जीना पशु-प्रवृत्ति है और मनुष्यों के लिए जीना – मरना मनुष्यता है। संसार में सदा उसी की यशोगाथा गाई जाती है जो सारे संसार में अपनापन देखता है और सबको अपना मानता है।
रंतिदेव, दधीचि, उशीनर, कर्ण आदि महान आत्माओं ने संसार के हित में बढ़-चढ़कर त्याग किया। अतः मनुष्य को चाहिए कि वह उनसे प्रेरणा पाकर इस नश्वर शरीर का मोह न करे। वह मन में सहानुभूति, दया, उदारता और परोपकार को स्थान दे। कवि मनुष्य को प्रेरणा देता हुआ कहता है कि कभी धन और भाग्य का गुमान (घमंड) नहीं करना चाहिए। इस संसार में कोई अनाथ नहीं है। सब पर परमात्मा का हाथ है। भाग्यहीन नर वह है जो अधीर होकर हाय-हाय करता है।
इस अनंत आकाश में असंख्य देव तुम्हारी सहायता करने को तैयार हैं, परंतु सब मनुष्यों को चाहिए कि परस्पर सहायता से आगे बढ़ें। वे सभी मनुष्यों को अपना बंधु माने। एक परमात्मा ही सबका पिता है। चाहे लोगों के कर्म विविध हों किन्तु अंतरात्मा से सभी एक हैं। इसलिए हर मनुष्य को दूसरे की व्यथा हरने का प्रयत्न करना चाहिए। मनुष्य को चाहिए कि वह आपस में मेल-जोल बढ़ाते हुए राह के रोड़ों को हटाते हुए, भिन्नता की जगह एकता को बढ़ाते हुए औरों का उद्धार करे।