कविता : ज़माना बदलता है तो बदल जाए
ज़माना बदलता है तो बदल जाए
माता-पिता और गुरू ही हमारे भगवान हैं,
इन जैसा न कोई महान है।
यहीं हैं हमारे भविष्य निर्माता,
इनके जितना प्यार न कोई हमें दे पाता।
बोझ समझने लगी हैं इन्हें आज की युवा पीढ़ी,
युवा होते ही माता-पिता को बच्चे
रौंद देते हैं जैसे ये हों कोई सीढ़ी।
पैसा ही बच्चों के लिए सब कुछ है,
उनके लिये पैसे के सामने
माता-पिता और गुरू भी तुच्छ हैं।
इस कलयुग में किसी इन्सान में नहीं है सच्चाई,
इसी तरह हर रिश्ते में भी है बेवफाई।
जमाना बदल गया है,
बच्चों के विचार बदल गए हैं।
देश की प्रगति तो हुई है,
परंतु इसके साथ वृद्ध आश्रमों की गिनती भी बढ़ी है।
हमें इस बात पर आनी चाहिए लज्जा,
माता-पिता के साथ ऐसा करने वाले बच्चों को मिलनी चाहिए सजा।
यही सही है कि हमें अपने विचारों को बदलना है,
मगर अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को नहीं भुलाना है।
हमें श्रवण कुमार का लेना चाहिए उदाहरण,
वही अपने वृद्ध माता-पिता के थे इकलौते,
हमारे बचपन में जिन्होंने हमारी
ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया,
उनके बुजुर्ग होने पर उनका हाथ
थामकर हमें अपना फर्ज है निभाना,
माता-पिता और गुरू के हम पर जो कर्ज हैं
उन्हें है चुकाना।
जमाना बदलता है तो बदल जाए
हमें नहीं है कभी बदलना।