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कथा, कहानी अथवा घटना सुनाना (मौखिक अभिव्यक्ति)


कथा, कहानी अथवा घटना सुनाना


मौखिक अभिव्यक्ति की कुशलता विकसित करने के लिए घटनाओं, उत्सवों, दृश्यों, मनोरंजक या दुखद प्रसंगों का वर्णन करने का अभ्यास भी अपेक्षित होता है। इसके लिए कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है; जैसे-विषय की विस्तृत जानकारी, सूक्ष्म निरीक्षण क्षमता जिससे वर्णन में हर बात को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जा सके, क्रमबद्धता, विषय के बारे में अपना दृष्टिकोण, विषयानुरूप स्पष्ट एवं प्रभावी भाषा।

कहानी कही जाती है, पर यदि ठीक ढंग से न कही जाए तो वांछित प्रभाव नहीं पड़ता और श्रोताओं का मनोरंजन भी नहीं होता।

1. कहानी कहने वाले को कहानी पूरी याद होनी चाहिए। सभी पात्रों के नाम और घटनाओं का क्रम स्पष्ट होना चाहिए। ‘उसने उससे कहा कि उसे वह करना था’ जैसे वाक्य प्रभाव को कम करते हैं।

2. कहानी में स्पष्टता होनी चाहिए। बड़ी कहानी को भी सुलझे रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। अनावश्यक वर्णन, उपदेश आदि नहीं होने चाहिए।

3. वर्णन और संवाद दोनों की कहानी कहने में आवश्यकता होती है। दोनों में संतुलन होना चाहिए।

4. छोटे बच्चों को कहानी सुनाते समय उसमें नाटकीयता अधिक होनी चाहिए।

5. भाषा का स्तर श्रोताओं के स्तर के अनुरूप होना चाहिए।

6. ध्यान कहानी में बना रहे, इसके लिए आवश्यक है कि आवाज़ इतनी ऊँची हो कि सबको आराम से सुनाई दे।

7. आवाज़ में आवश्यक उतार-चढ़ाव होना चाहिए। जोश के समय आवाज़ ऊँची और दुख के समय आवाज़ नीची होनी चाहिए, किंतु इतनी भी कम-ज्यादा नहीं कि श्रोताओं को सुनने में बाधा पहुँचे।

8. ऐसी कहानी का चुनाव करना चाहिए जिसका कोई उद्देश्य हो, जो किसी निष्कर्ष की ओर ले जाती हो। यह शिक्षा कहानी से स्वयं स्पष्ट होनी चाहिए। यदि बच्चे बहुत छोटे हों तो कहानी के उपरांत उनसे पूछा भी जा सकता है या स्वयं बताया जा सकता है।

उदाहरण

कहानी की कौन-सी प्रस्तुति अधिक प्रभावकारी होगी, इसका फैसला स्वयं करें :

1. “हाथी और बंदर नदी की ओर दौड़ पड़े, परंतु नदी गहरी और पानी अधिक होने के कारण बंदर डरने लगा और उसने हाथी से कहा-‘“नदी गहरी है, मैं तैरकर नदी के उस पार नहीं जा सकता हूँ” तब हाथी ने बंदर से कहा-“तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ, क्योंकि मैं ताकतवर हूँ तथा गहरे पानी में तैर सकता हूँ।”

2. यह सुनते ही हाथी और बंदर नदी की तरफ़ दौड़ पड़े, पर नदी बहुत गहरी थी, उसमें इतना ढेर सारा पानी था कि बंदर को तो डर ही लगने लगा। उसने हाथी से कहा-“हाथी ! हाथी! मुझे डर लग रहा है।” इतने गहरे पानी को मैं तैरकर कैसे पार करूँगा?” हाथी बड़ा था, उसे बिल्कुल डर नहीं लग रहा था, उसने बंदर से कहा…” अरे बंदर, डरो मत, तुम बस मेरी पीठ पर चढ़ जाओ। मैं ताकतवर हूँ, आराम से नदी पार कर लूँगा।”