ऐसा लाल……सभै सरै।।


ऐसा लाल तुझ बिनु कउनु करै।

गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै ।।

जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।

नीचह ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।

नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै।।


भावार्थ : निम्न कुल के भक्तों को समभाव स्थान देने वाले प्रभु का गुणगान करते हुए कवि कहते हैं कि हे स्वामी! हे प्रभो!! ऐसी कृपा तुम्हारे अलावा कौन कर सकता है। हे गरीब निवाज! हे स्वामी !! तुम ही ऐसे दयालु स्वामी हो जिसने मुझ अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख दिया अर्थात् तुम्हीं ने मुझे राजाओं जैसा सम्मान प्रदान किया, जिसे संसार अछूत मानता है। हे स्वामी! तुमने मुझ पर असीम कृपा की। मुझ पर द्रवित हो गए। हे गोबिंद! तुमने मुझ जैसे नीच प्राणी को इतना उच्च सम्मान प्रदान किया। ऐसा करते हुए तुम्हें किसी का भी भय नहीं। तुम्हारी ही कृपा से नामदेव, कबीर जैसे जुलाहे, त्रिलोचन जैसे सामान्य, सधना जैसे कसाई और सैनु जैसे नाई संसार से तर गए। उन्हें ज्ञान प्राप्त हो गया। रैदास कहते हैं कि हे संतो! सुनो, हरि जी सब कुछ करने में समर्थ हैं। वे कुछ भी कर सकते हैं।


शब्दार्थ


लाल : स्वामी।

गरीब निवाजु : दीन-दुखियों पर दया करनेवाला।

गुसईआ : स्वामी।

छोति : छुआछूत ।

जगत कउ लागै : संसार के लोगों को लगती है।

ता पर तुहीं ढरै : उन पर द्रवित होता है।

नीचहु ऊच करै : नीच को भी ऊँची पदवी प्रदान करता है।

नामदेव : महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध संत।

तिलोचनु : एक प्रसिद्ध वैष्णव आचार्य जो ज्ञानदेव व नामदेव के गुरु थे।

सधना : एक उच्च कोटि के संत जो नामदेव के समकालीन माने जाते हैं।

हरिजीउ : हरि जी से।