अपठित गद्यांश


निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-


सच के मार्ग पर चलना अपने आप में तप है। तप का अर्थ है ‘तपना’। सच का मार्ग सदैव कंटीला होता है, कठिन होता है। तप करने की ताकत रखने वाला ही इस पर चल सकता है। तप वही कर सकता है जिसका हृदय साफ, निष्पाप व एकाग्रचित्त हो। ‘सत्य’ मानव हृदय के गौरव का प्रतीक है। सच बोलने वाले के मुख पर अलग तरह का तेज होता है, चमक रहती है। सत्य का पालन करने के लिए सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने अपने पूरे जीवन को तपस्वी की तरह जीया। तप और सत्य मिलकर मानव जीवन को विकास की राह पर अग्रसर करते हैं। लाख झूठ भी उसके समक्ष टिक नहीं सकते। झूठ बुलबुले की भांति है। जिसका अस्तित्व क्षणिक है। सत्य स्थाई है, चिरंतर है।


प्रश्न 1. सच का मार्ग कैसा होता है?

प्रश्न 2. तप कौन कर सकता है?

प्रश्न 3. सच बोलने वाले का मुख कैसा होता है?

प्रश्न 4. झूठ कैसा होता है?

प्रश्न 5. ‘मानव’ का पर्यायवाची लिखें।

प्रश्न 6. गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।