अपठित गद्यांश : तीसरे दिन की………… राक्षस भी हो सकता है।
अतिथि तुम कब, जाओगे : शरद जोशी
तीसरे दिन की सुबह तुमने मुझसे कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता हूँ।” यह आघात अप्रत्याशित था और इसकी चोट मार्मिक थी। तुम्हारे सामीप्य की वेला एकाएक यों रबर की तरह खिच जाएगी, इसका मुझे अनुमान न था। पहली बार मुझे लगा कि अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और घोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है।
प्रश्न (क) कौन-सा आघात अप्रत्याशित था?
उत्तर : लेखक का अतिथि अनचाहे रूप से दो दिन ठहर चुका था। तीसरे दिन उसे चले जाना था। परंतु जाने की बजाय उसने धोबी से कपड़े धुलवाने की इच्छा प्रकट की। यह समाचार लेखक के दिल पर आघात की तरह था, उसे आशा नहीं थी कि वह इस तरह आकर जम जाएगा।
प्रश्न (ख) अतिथि कब देवता और कब राक्षस बन जाता है?
उत्तर : भारतीय परंपरा के अनुसार अतिथि को देवता के समान माना जाता है। यदि अतिथि थोड़ी देर के लिए आए और सम्मानपूर्वक विदा हो जाए तो वह देवता होता है। परंतु लंबे समय तक जम जाने के कारण वही देवता तुल्य अतिथि राक्षस प्रतीत होने लगता है।
प्रश्न (ग) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर : पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि,
लेखक-शरद जोशी।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न (क) अतिथि ने धोबी को कपड़े देने की इच्छा व्यक्त की थी, क्योंकि-
(i) अतिथि को लेखक की मेहमाननवाजी बहुत अच्छी लगी थी।
(ii) अतिथि को कपड़े धोना नहीं आता था।
(iii) अतिथि को घर जाने की जल्दी थी।
(iv) अतिथि लेखक के यहाँ और कुछ दिन रुकना चाहते थे।
प्रश्न (ख) लेखक के लिए कौन-सा आघात अप्रत्याशित था?
(i) अतिथि का मानव न होना
(ii) अतिथि का धोबी को कपड़े देने की बात कहना
(iii) अतिथि द्वारा जाने की इच्छा व्यक्त करना
(iv) अतिथि के सामीप्य की बेला का समाप्त हो जाना
प्रश्न (ग) लेखक को अतिथि किसके समान प्रतीत हो रहा था?
(i) देवता के समान
(ii) मनुष्य के समान
(iii) राक्षस के समान
(iv) महान व्यक्ति के समान
प्रश्न (घ) अतिथि देवता समान कब बन जाता है?
(i) सभी के साथ अधिकतम दिन व्यतीत करने पर
(ii) थोड़े दिनों के लिए आकर सम्मानपूर्वक विदा हो जाने पर
(iii) अधिक समय के लिए आकर वहीं पर रह जाने पर
(iv) आने के बाद जाने की बात भूल जाने पर