अनुच्छेद लेखन : होली
होली
होली का त्योहार फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस समय ऋतुराज वसंत का स्वागत करने के लिए प्रकृति अपनी अपूर्व सुंदरता उड़ेल देती है। कहा जाता है कि राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप ने अपने-आप को ईश्वर कहलाने के लिए अपने ही बेटे प्रहलाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया था। होलिका को यह वरदान मिला था कि अग्नि उसे जला न सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।
किसानों के लिए होली का विशेष महत्त्व है। मार्च के महीने में अधपके अनाज के बालों की आहुति दे वह अग्नि देवता को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। होली का त्योहार बिल्कुल अनोखा है। होली के दिन, रात को लकड़ी व उपलों के ढेर में आग लगाई जाती है। लोग खुशी से नाचते हैं। अगले दिन ‘दुलैहड़ी’ मनाई जाती है। प्रात:काल से ही सभी मिलकर फाग खेलते हैं। इस दिन धनी-निर्धन, ऊँच-नीच सभी का भेदभाव जाता रहता है। सायंकाल स्थान-स्थान पर विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। वस्तुत: होली एक पर्व ही नहीं अपितु एक पुण्य-पर्व है। इस दिन अपार हर्ष के बीच सभी लोग बैर-विरोध तथा भेदभाव छोड़कर गले मिलते हैं। अपनी पुरानी गलतियों को भुलाकर वे पुनः मित्र बन जाते हैं।