अनुच्छेद लेखन : सादा जीवन उच्च विचार


सादा जीवन उच्च विचार


आज का युग प्रदर्शन और कृत्रिमता का युग बनकर रह गया है। आज तड़क-भड़क को ही विशेष एवं अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। तन पर पहनने वाले कपड़े हों या घरों-दफ़्तरों के उपकरण और उपयोगी सामान; सभी जगह प्रदर्शनप्रियता के कारण कोरी चमक-दमक का बोलबाला है। सादगी और सादे लोगों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है। हमारे विचार से इसी का दुष्परिणाम पूरे समाज के नैतिक पतन, भ्रष्टाचार एवं आचारहीनता के रूप में सामने आ रहा है। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ अर्थात् सादगी भरा रहन-सहन, खान-पान और अन्य प्रकार के जीवन-व्यवहार बेहतर बनाने पर ही आदमी के मन में अच्छे भाव और विचार आ सकते हैं। वे सादगी भरे उच्च विचार ही व्यक्ति के जीवन को उच्च और महान बना सकते हैं। विचार और व्यवहार को उच्च बना लेने पर ही मनुष्य को उस वास्तविक सुख-शांति की प्राप्ति संभव हो सकती है, जिसकी खोज में वह दिन-रात मारा-मारा फिरता है और चारों ओर मार-धाड़ करता रहता है। तभी तो वह स्वयं बेचैन रहकर दूसरों को भी बेचैन करता है। आज चारों तरफ अराजकता और अशांति का राज है। असहिष्णुता और मार-धाड़ है लेकिन हमें स्वयं को अब सँभालकर रखने की आवश्यकता है। मनुष्य होने के नाते हमें जीवन की सामान्य आवश्यकता पूर्ति के उपकरण सहज भाव से पाकर जीने का अधिकार है। इस अधिकार को पाने का हमारे विचार से मात्र एक ही उपाय या रास्ता है-‘सादा जीवन, उच्च विचार’, अन्य कोई नहीं।