अनुच्छेद लेखन : साँच बराबर तप नहीं (सत्यमेव जयते)


कबीरदास के अनुसार-

“साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हृदय साँच है – ताके हिरदय प्रभु आप।”

अर्थात सत्य ही वह तपस्या है, जिसके बल से अपने-आप में ही प्रभु और सभी प्रकार की सफलता को पाया जा सकता है। मन, वचन, कर्म में एकरूपता ही सत्य है। संसार में सत्य की उसी प्रकार आवश्यकता है, जिस प्रकार अंधकार में दीपक की। जब तक सत्य छिपा रहता है, तब तक झूठ, पाखंड, छल-कपट, धोखा, रिश्वत और भ्रष्टाचार आदि दुर्गुण फैलते हैं। सत्य प्रकट होने पर झूठ के पाँव उखड़ जाते हैं। पाखंड का भंडा फूट जाता है। छल-कपट रूपी बादल फट जाता है। धोखा धुलकर बह जाता है। रिश्वत और भ्रष्टाचार समाप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप जीवन और समाज का सारा वातावरण उज्ज्वल हो जाता है। पारस्परिक व्यवहार और सभी प्रकार के व्यापार का तो आधार ही सत्य है। राष्ट्रों का व्यवहार भी सत्य के सहारे चलता है। सभी धर्मों, जातियों और देश के सभी धर्म-ग्रंथ सत्य का प्रचार करते हैं। यहाँ तक कि बुरे से बुरा व्यक्ति भी यही चाहता है कि उसके सामने कोई झूठ न बोले। सत्यवादी के सामने कठिनाइयाँ अवश्य आती हैं। उनको सहकर भी सत्य मार्ग पर डटे रहना वास्तव में तपस्या ही है। इससे बड़ा अन्य कोई तप नहीं है। कभी-कभी हम देखते हैं कि झूठ बोलने वाले छूट जाते हैं और सत्य बोलने वाले बंदी बना लिए जाते हैं। इससे दूसरे लोगों का सत्य के प्रति विश्वास हिल जाता है। सत्य को अधिक देर तक दबाया नहीं जा सकता। वह बादलों को फाड़कर प्रगट होने वाली सूर्य-किरणों के समान एक-न-एक दिन उजागर होकर अपने प्रकाश से सभी को चमत्कृत कर दिया करता है। सत्य का आचरण करना निश्चय ही कठिन होता है, किंतु दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से सत्य की सफल साधना कर पाना कठिन और असंभव नहीं है। इतिहास ऐसे ही पुरुषों को मान्यता और अमरत्व प्रदान किया करता है, जो सत्य को जीवन का दृढ़ आधार बनाता है। इसलिए सत्य पर अटल रहने का भरसक अभ्यास करना और आदत डालनी चाहिए। अंतिम विजय निश्चित है।


सांच बराबर तप नहीं