अनुच्छेद लेखन : विद्यालय का वार्षिकोत्सव


विद्यालय का वार्षिकोत्सव विद्यालय की उन्नति का परिचायक है। विद्यार्थी और अध्यापक दोनों के लिए यह हर्ष और उल्लास का पर्व है। विद्यार्थी की प्रतिभा, योग्यता और कार्य कुशलता के मूल्यांकन का दिन है। अपने श्रेष्ठ कार्यक्रम और प्रदर्शन द्वारा जनता का दिल जीतने का सुअवसर है इसलिए सभी शिक्षण संस्थाएँ चाहे वे विद्यालय हों या महाविद्यालय अपना वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाती हैं। उत्सव की तैयारी एक मास पहले ही आरंभ हो जाती है। स्कूल बोर्ड पर प्रतिदिन सूचना लिखी रहती है। कहीं शारीरिक व्यायाम का सामूहिक अभ्यास हो रहा है, तो कहीं डंबल, कहीं बैंड के स्वर में एकरूपता लाने का प्रयत्न हो रहा है। कहीं नाटक की तैयारी हो रही है, तो कहीं कवि दरबार की। इस भाँति स्कूल का हर विद्यार्थी उत्सव की तैयारी में संलग्न रहता है। वार्षिकोत्सव के दिन स्कूल के मैदान में चहल-पहल प्रातः से ही आरंभ हो गई। शामियाना ताना जाने लगा, नाटक के लिए मंच बनना शुरू हो गया और दरियाँ बिछाई जाने लगीं। तीन बजे से ही आमंत्रित अतिथियों का आगमन आरंभ हो गया। प्रवेश पत्र के अनुसार अपने स्थान पर सभी बैठने लगे। पंडाल में अध्यक्ष महोदय की कुर्सी तक पहुँचने के लिए बीचोंबीच एक मार्ग छोड़ा हुआ है। उत्सव में भाग लेनेवाले विद्यार्थी पंक्तिबद्ध स्कूल-गणवेश में खड़े हैं। मार्ग पर लाल बजरी बिछी हुई बड़ी सुंदर लग रही है। मार्ग में दोनों ओर माननीय अध्यक्ष के स्वागत के लिए एन०सी०सी० के छात्र खड़े हैं, जिनके हाथों में बंदूकें हैं। ठीक चार बजे वार्षिकोत्सव के मनोनीत अध्यक्ष दिल्ली के उप राज्यपाल पधारे। एन०सी०सी० की टीम ने स्वागत किया। स्कूल के व्यवस्थापक व प्रधानाध्यापक महोदय ने अध्यक्ष की अगवानी की। एक-एक करके सभी निर्धारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए। अध्यक्ष महोदय ने संक्षिप्त भाषण देकर विद्यार्थियों को खूब पढ़ने-लिखने और शारीरिक शिक्षण वाले कार्यक्रम में भाग लेने की सलाह देते हुए अनुशासन का महत्त्व समझाया। अंत में प्राचार्य महोदय ने उपस्थित सभी लोगों का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की।