अनुच्छेद लेखन : विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी जीवन
विद्यार्थी-जीवन उन विद्याओं, कलाओं या शिल्पों के शिक्षण का काल है, जिनसे वह छात्र-जीवन के अनंतर पारिवारिक दायित्वों का वहन कर सके। अत: यह संघर्षमय संसार में आन, मान और शान से जीने की योग्यता का निर्माण करने का समय है। इन सबके निमित्त ज्ञानार्जन करने, शारीरिक और मानसिक विकास करने, नैतिकता द्वारा आत्मा को विकसित करने की स्वर्णिम अवधि है विद्यार्थी जीवन। प्रश्न यह है कि क्या आज का शिक्षार्थी सच्चे अर्थों में विद्यार्थी जीवन का आनंद ले रहा है? इसका उत्तर नहीं में होगा। कारण, उसे अपने विद्यार्थी जीवन में न तो ऐसी शिक्षा दी जाती है, जिससे विद्यार्थी जीवन पार करते ही आय का स्रोत प्रारंभ हो जाए और न ही उसे वैवाहिक अर्थात् पारिवारिक जीवन जीने की कला का पाठ पढ़ाया जाता । इसलिए जब वह विद्यार्थी जीवन से अर्थात् गैर-ज़िम्मेदारी से पारिवारिक जीवन अर्थात् संपूर्ण ज़िम्मेदारी के जीवन में पदार्पण करता है तो उसे असफलता का ही मुँह देखना पड़ता है। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी अनुपयुक्त बहुविध विषयों का मस्तिष्क पर बोझ लादता है। आज का विद्यार्थी जीवन विद्या की साधना, मन की एकाग्रता और अध्ययन के चिंतन-मनन से कोसों दूर है। आज का विद्यार्थी जीवन प्रेम और वासना के आकर्षण का जीवन है। वह गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड बनाने में रुचि लेता है। व्यर्थ घूमने-फिरने, होटलों-क्लबों में जाने, सिनेमा देखने में समय का सदुपयोग मानता है। आवश्यकता है इसे सही राह दिखाने की, सही मार्गदर्शन की और एक ऐसी शिक्षा-प्रणाली की, जो वास्तव में विद्यार्थियों को एक सफल नागरिक व ज़िम्मेदार पारिवारिक सदस्य बनने में सहायता प्रदान करें।