अनुच्छेद लेखन : यात्रा जिसे मैं भुला नहीं पाता
यात्रा जिसे मैं भुला नहीं पाता
सर्दियों का मौसम था और हम ट्रेन से मंसूरी जा रहे थे। शायद हमें बर्फ गिरती हुई देखने को मिल जाए-यह उत्सुकता हमारे मन में थी। हम देर रात तक तरह-तरह के खेल खेलते रहे और फिर सो गए। जैसे ही सोए गाड़ी एक झटके से रुक गई। जो नीचे की बर्थ पर थे, वे लुढ़क कर नीचे गिर गए। ऊपर की बर्थ वालों को भी हलकी चोट आई। पता लगा कि किसी ने अचानक चेन खींच दी थी। कोई चोर था जो एक बैग चुराकर भाग रहा था। लगभग 15-20 मिनट रुककर गाड़ी फिर आगे बढ़ी। अब तो हमारी नींद गायब हो चुकी थी। सुबह हम देहरादून स्टेशन पर उतरे और वहाँ से बस से मंसूरी के लिए रवाना हुए। पता लगा कि रात से बर्फ़ गिर रही है और रास्ता कभी भी बंद हो सकता है। हम आधे रास्ते पहुँच गए थे। बस रुक गई, पता लगा कि एक पत्थर लुढ़ककर सड़क पर आ गया है, साथ ही बर्फ़बारी होने के कारण रास्ता बिल्कुल बंद हो गया है। कोई उपाय न था। एक पूरा दिन हमने यात्री बस में बिताया। बर्फ गिरती देखी तो सही मगर हम उसका आनंद न उठा पाए। जब तक मंसूरी पहुँचे इतना परेशान हो गए थे कि सोचा अब आनंद उठाने के चक्कर में फिर कभी इतनी परेशानी मोल न लेंगे। दो दिन वहाँ बिछी हुई बर्फ पर हम घूमते रहे और एक कभी न भुला सकने वाली यात्रा की याद को अपने मन में लेकर हम घर वापस लौट आए।