‘भ्रष्टाचार’ शब्द ‘भ्रष्ट + आचार’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- ‘भ्रष्ट आचरण’। आज भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप भाई-भतीजावाद, गुटबंदी, बेईमानी, मिलावट, रिश्वतखोरी, छल-कपट आदि देखने को मिलते हैं। भ्रष्टाचार मनुष्य से किसी की हत्या, मारकाट, लूटमार, हेरा-फेरी, कुछ भी करा सकता है। आज भारतीय जीवन का कोई भी क्षेत्र सरकारी या गैर-सरकारी, निजी या सार्वजनिक, ऐसा नहीं है, जो भ्रष्टाचार से अछूता रहा हो। भ्रष्टाचार के तीन रूप – राजनीतिक भ्रष्टाचार, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, व्यवसायिक भ्रष्टाचार हैं। आज राजनीति भ्रष्टाचार का अखाड़ा बन चुकी है। राजनीति के संरक्षण में भ्रष्टाचार पनपता है। अपहरण, हिंसा, हत्या, अत्याचार, आतंक सब इसी के अंतर्गत आते हैं। मदिरा, सुंदरियाँ, धन, बल इसके हथियार हैं। उच्च पदों पर आसीन अधिकारी, पुलिस अधिकारी, बाबू, चपरासी कितना भी मुश्किल काम हो, पैसा हाज़िर तो सब काम फटाफट हो जाता है। गाड़ी चलाना न भी आता हो तो पैसे देकर ड्राइविंग लाइसेंस बन जाता है। अस्पताल, न्यायालय अन्य कार्यालय सभी जगह बिना कुछ दिए काम नहीं होता। खाद्य-पदार्थों में मिलावट, घटिया व नकली दवाइयाँ, जमाखोरी आदि भ्रष्ट तरीके देश व समाज को कमजोर बनाने के लिए अपनाए जाते हैं। मसालों में मिलावट, दाल-चावल में पत्थर, घी में चर्बी आदि कृत्य भ्रष्टाचार के अंतर्गत आते हैं। भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए लोगों का ध्यान भारतीय संस्कृति और मानवीय मूल्यों की ओर आकृष्ट करना चाहिए। चुनाव-प्रणाली, कर-प्रणाली में सुधार लाना ज़रूरी है। शासन व्यय में कटौती करके सबके सामने सादगी का आदर्श रखा जाना चाहिए। प्रत्येक नागरिक राष्ट्र को महान समझकर उसके गौरव को बनाए रखने के लिए तत्पर रहे। भ्रष्टाचारी को उसके अपराध का दंड मिल सके, इसके लिए कानून को कठोर दंड का प्रावधान करना चाहिए। समाज में ह्रास होते मानवीय मूल्यों की पुनः स्थापना की जानी चाहिए, जिन पर भारतीय संस्कृति टिकी हुई है।