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अनुच्छेद लेखन : भारतीय समाज और अंधविश्वास


भारतीय समाज और अंधविश्वास


भारतीय समाज की जब बात की जाती है तो यह सामने आता है कि यहाँ ऐसे अनेक अंधविश्वास दिखाई देते हैं, जिनके कारण भारतीयों को व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। हमारे समाज के अनेक विश्वास जीवन की गतिशीलता के साथ न चलने के कारण पंगु हो गए हैं। अंधविश्वासों से चिपके हुए भारतीय अब भी दुख-क्लेश को भोग रहे हैं। इन अंधविश्वासों में धर्म की रूढ़िबद्धता, जादू-टोने में विश्वास, देवी-देवताओं के प्रति अबौद्धिक श्रद्धा तथा अन्य सामाजिक कुरीतियाँ हैं। इन सबके कारण इस वैज्ञानिक युग में भी भारत उतनी प्रगति नहीं कर रहा, जितनी करनी चाहिए। भारतीय हिंदू समाज का सबसे बड़ा अंधविश्वास छुआछूत का विश्वास है। कुछ जातियों को अस्पृश्य मानकर उनका बहिष्कार करना, उनके साथ भोजन करना, साथ रहना, उठना-बैठना निषेध समझना अत्यंत ही घृणित कार्य हैं। इससे हमारा संपूर्ण समाज खोखला हो गया। भारतीय समाज का एक काफी बड़ा वर्ग जादू-टोने में विश्वास रखता था। यद्यपि अब बौद्धिकता के बढ़ने से उसकी ओर कम ध्यान दिया जाता है, लेकिन आज भी यह कहीं-कहीं जीवित रहकर हमारे समाज को कमज़ोर बना रहा है। देवी-देवताओं का नाम लेकर चढ़ाई जाने वाली बलि भी कई जगहों पर देखी जा सकती है। बिल्ली का रास्ता काटना, छींकना, पीछे से आवाज देना, चलते हुए अँधेरा हो जाना आदि ऐसे अपशगुन माने गए हैं, जिनके कारण लोग अपने महत्त्वपूर्ण काम तक रोक देते हैं। हमारे समाज का सबसे बड़ा अंधविश्वास समग्र रूप से परंपराओं के प्रति अंध-भक्ति है। हम आज भी उन बातों से जुड़े हुए हैं, जो इस युग में अव्यावहारिक हो गई हैं। परंपराओं की अंध-आसक्ति ने हमारे विकास को रोक दिया है। आज आवश्यकता है हमारे भीतर जागृति की। अवश्यकता है धर्म के वास्तविक रूप को समझकर उसका आचरण कर प्रगति की ओर बढ़ने की।