अनुच्छेद लेखन : भारतीय नारी


भारतीय नारी


नारी तुम केवल श्रद्धा हो, जग के सुंदर आँगन में।

पीयूष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में॥

किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति एवं उन्नति का मूल्यांकन वहाँ के नारी वर्ग की स्थिति को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। जो राष्ट्र स्त्री को केवल भोजन पकाने एवं बच्चे पैदा करने का साधन समझते हैं, वे दुर्भाग्य से अभी सभ्यता, संस्कृति या शिष्टता की दौड़ में बहुत पीछे हैं। प्राचीन युग में स्त्रियाँ पुरुषों के साथ प्रत्येक सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों में समान रूप से भाग लेने की अधिकारिणी थीं। प्राचीन युग में नारी का बड़ा सम्मान था। द्वापर युग आने पर अविश्वास उत्पन्न हुआ। अनेक बंधनों में नारी बाँध दी गई। मध्यकाल में नारी को गुलाम और भोग्या बनाकर पतन की दिशा की ओर मोड़ दिया गया। सहधर्मिणी के स्थान पर वह केवल दासी एवं वासना पूर्ति का साधन मात्र बन गई। आधुनिक काल में नारी ने हर क्षेत्र में विकास किया है। भारतीय संविधान में भी नर-नारी को समान अधिकार दिए गए। शिक्षित महिला वर्ग ने स्वयं पर्दे का त्याग किया। आज 21वीं सदी में नारी, पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर समाज के निर्माण में जुटी हुई है। संघर्षों में शक्ति-रूपा बनकर पुरुष को सहयोग दे रही है और उसकी प्रेरक शक्ति बनी हुई है।