अनुच्छेद लेखन : बढ़ते उद्योग कटते वन
प्रकृति सदा से ही मनुष्य की सहचरी रही है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर है। वृक्ष सदा से ही अपने फल, लकड़ी, आदि मनुष्य जीवन के लिए समर्पित करते चले आए हैं। वृक्ष का प्रत्येक भाग मनुष्य के लिए लाभकारी है। जहाँ इनसे हमें ऑक्सीजन मिलती है, वहीं वे वर्षा को लाने में, बाढ़ रोकने में, भू-स्खलन को रोकने के लिए, पर्यावरण शुद्ध करने में मनुष्यों के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध हुए हैं। परंतु कृतघ्न मनुष्य प्रकृति के इस वरदान को अभिशाप बनाने में लगा हुआ है। अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए धन की बढ़ती लालसा के लिए वह इन वनों को समाप्त करता चला जा रहा है। पहाड़ों पर से अवैध रूप से कटती लकड़ियाँ वन संपदा को भारी हानि पहुँचा रही हैं। निरंतर बढ़ती जनसंख्या के कारण व औद्योगीकरण के कारण वनों का तेजी से सफाया होता जा रहा है। पृथ्वी कंकरीट के जंगल में परिवर्तित होती चली जा रही है। भ्रष्ट अधिकारियों एवं, धन लोलुप व्यापारियों ने मिलकर वन-संपदा को भारी क्षति पहुँचाई है। वनों के क्षेत्रफल में भारी कमी आने से अनेक दुष्परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जैसे-प्रकृति में असंतुलन, प्राकृतिक संसाधनों की कमी, भूस्खलन, भूकंप, महामारियाँ एवं प्रदूषण। यहाँ तक कि पृथ्वी के कवच के रूप में विद्यमान ओजोन परत में भी छिद्र हो गए हैं। न जाने मनुष्य कब चेतेगा? एक समय सुंदरलाल बहुगुणा ने ‘चिपको आंदोलन’ चलाकर लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया था। आज तो इसकी बहुत आवश्यकता है। सुनामी एवं भूकंप इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। सूखा एवं बाढ़ जैसी प्राकृतिक समस्याएँ मुँह बाए खड़ी हैं। वनों की आवश्यकता व महत्ता जानकर भी न जाने क्यों मनुष्य प्राकृतिक कहर से अनजान बना बैठा है। वनों को काटकर धरती की छाती पर ऊँचे-ऊँचे भवन व इमारतों का निर्माण कर रहा है। अभी भी समय है कि मनुष्य समय रहते जागरूक हो जाए। ईश्वर प्रदत्त इस वरदान का स्वागत करे। सरकार को भी इस ओर कदम बढ़ाने चाहिए। वृक्ष देश की नैतिक, सामाजिक और आर्थिक समृद्धि के मूल स्रोत हैं। हमारे देश में प्रतिवर्ष वन-महोत्सव मनाया जाता है। प्राचीन काल में तो पीपल, तुलसी, बरगद के पेड़ों की पूजा की जाती थी। उनमें देवताओं का निवास माना जाता है। नीम का पेड़ तो राम-बाण औषधि के तुल्य है। वृक्षों के बारे में संपूर्ण जानकारी पाकर भी न जाने क्यों मनुष्य अपना शत्रु आप बन रहा है। देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह वनों का संरक्षण करे। ‘पेड़ से वायु, वायु से आयु’ का नारा दिया जाना चाहिए।