अनुच्छेद लेखन : प्रदूषण की समस्या
मनुष्य विकासशील और विवेकशील प्राणी है, पर साथ ही महत्त्वाकांक्षी भी है। इसने शीघ्र विकास कर लेने के लिए प्रकृति को सभी तरह से अनदेखा किया है। विकास की होड़ में पर्यावरण-संतुलन की अनदेखी के कारण आज मानव जाति को प्रदूषण की अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, उर्वर मिट्टी और संतुलित ध्वनि का सभी ओर अभाव है। औद्योगिक क्रांति के बाद पूरी दुनिया धीरे-धीरे प्रदूषण की चपेट में आ गई है। वायु प्रदूषण के कारण वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ गई है। जिससे लोगों को ठीक से साँस लेना भी मुश्किल हो गया है। ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो गई है। उद्योगों का कचरा नदी-नालों और जलाशयों में बहाए जाने से जल प्रदूषण की भीषण समस्या उत्पन्न हो गई है। भारत में तीव्र गति से शहरीकरण हुआ है। शहरों में वाहनों के बढ़ते प्रयोग, उद्योगों के शोर, लाउडस्पीकर आदि ने ध्वनि को प्रदूषित कर दिया है। प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी, गर्मी का चक्र भी ठीक नहीं चलता है। सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों के कारण भी प्रदूषण है। प्रदूषण की रोकथाम का उपाय लोगों के हाथों में है। इसे जनचेतना से रोका जा सकता है। यद्यपि सरकार जनहित में उपाय कर रही है। हरियाली को बढ़ावा देना, वृक्ष उगाना, शोर पर नियंत्रण करना, कूड़े-कचरे का ठीक से प्रबंध करना और उन्हें जलाशयों व नदियों से दूर रखा जाना। ये उपाय सरकार और जनता दोनों को अपनाने चाहिए। समय रहते अगर मानव ने पर्यावरण की स्वच्छता के महत्त्व को नहीं समझा और अपनी महत्त्वाकांक्षा के कारण प्राकृतिक नियमों की अनदेखी होती रही तो संपूर्ण मानव जाति को विनाश से बचा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा।