अनुच्छेद लेखन : पर उपदेश कुशल बहुतेरे


पर उपदेश कुशल बहुतेरे


दूसरों को उपदेश देने में तो बहुत-से लोग कुशल होते हैं, पर स्वयं उनका पालन करने वाले बहुत कम। अपने प्रतिदिन के जीवन में अनेक ऐसे व्यक्तियों से हमारा सामना होता है, जो हमें कुछ-न-कुछ सलाह दिया करते हैं। चाहे वह बातचीत के रूप में हो या मंच पर खड़े होकर भाषण के रूप में। पर ऐसे उपदेशों का प्रभाव तभी पड़ता है, जब व्यक्ति स्वयं भी उनका पालन करता हो। उपदेशक द्वारा कही गई बातों का अनुसरण अन्य व्यक्ति तभी आनंदपूर्वक करेंगे, जब वह स्वयं भी उसे आचरण में लाता हो। उपदेश देने के लिए तो सभी तैयार रहते हैं, परंतु जब तक वह जीवनानुभवों से जुड़ा न हो तब तक उसका प्रभाव नहीं पड़ता। मेघनाद वध के समय रावण द्वारा दिए गए नीति के उपदेशों के संबंध में तुलसीदास ने यह पंक्ति कही थी। उनके कथन निरर्थक थे, क्योंकि रावण स्वयं उनका पालन नहीं करता था। यदि मनुष्य अपने जीवन में भी उन उपदेशों को उतारे और अपने उदाहरण के माध्यम से दूसरों को शिक्षा दे, तो वह वास्तव में स्थायी और प्रभावी होगा।