CBSEEducationHindi Grammarअनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

अनुच्छेद लेखन : पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं


पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं


‘स्वतंत्रता मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है।’ स्वतंत्रता केवल मनुष्यों का नहीं समस्त प्राणियों का अधिकार है। प्रत्येक प्राणी चाहे वह नर हो या नारी, पशु हो या पक्षी सभी स्वतंत्र रहना चाहते हैं। जीवन की यदि कोई विडम्बना है तो वह है- पराधीनता। रूसो ने कहा है-“मनुष्य स्वतंत्र उत्पन्न होता है, किन्तु सब जगह वह बन्धनों से जकड़ा है।” नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भी कहा था- “मनुष्य के लिए कठोरतम दंड है-पराधीन होना।” पराधीनता को शत्रु करार देते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में कहा है- ‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।’ कवि श्री वियोगी हरि लिखते हैं – जो मनुष्य पराधीन नहीं उनके लिए स्वर्ग-नरक में अन्तर नहीं। इसके विपरीत जो मनुष्य पराधीन हैं, उनके लिए स्वर्ग भी नरक के समान होता है। स्वाधीनता जीवन का अमृत है और पराधीनता विष। पराधीन व्यक्ति स्वप्न में भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता है। समस्त भोग विलास व भौतिक सुखों के रहते हुए भी यदि वह स्वतंत्र नहीं है तो उसके लिए सब व्यर्थ है। स्वाधीन प्राणी की भावनाओं पर कोई अंकुश नहीं होता। वह स्वेच्छा से विचरण करता है। इंसान तो क्या पक्षी भी पिंजरे में रहकर स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा आज़ाद रहकर भूखा रहना अधिक पसंद करते हैं।

प्रसिद्ध कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी ने कहा है-


“हम पक्षी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक तीलियों से टकराकर, पुलकित पंख टूट जाएँगे।”