अनुच्छेद लेखन : नर हो न निराश करो मन को


नर हो न निराश करो मन को


मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह जिस और चाहे पार लगाए। शुक्ल जी की ये पंक्तियाँ हमें आत्मविश्वास न खोने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसके पास मन है तो विवेक भी है। मन यदि भटकता है तो विवेक उसे सही राह दिखाता है। यही कारण है कि विकट-से-विकट परिस्थितियों में जो मनुष्य धैर्य नहीं खोता, हिम्मत नहीं हारता, वह अपने विवेक के बल पर अपने विश्वास को कभी कम नहीं होने देता। ऐसा ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है। जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में यदि वह हार मान ले, निराश हो जाए तो सभी साधनों से संपन्न होते हुए भी उसकी स्थिति एकदम हीन हो जाती है। वह कभी सीधा खड़ा नहीं हो पाता, जबकि चित्त की दृढ़ता के बल पर मनुष्य असंभव को भी संभव बना देता है। जिसने अपने मन को जीत लिया, सफलता उसी के कदम चूमती है। आशावान व्यक्ति के सामने भाग्य भी घुटने टेक देता है। अपने मन में निराशा लाए बिना कर्म करने पर ही हम सारे संकल्पों को पूर्ण कर सकते हैं।