अनुच्छेद लेखन : दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम
“दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” – उक्ति का तात्पर्य है दुविधा में पड़ने से कुछ नहीं मिलता है, अपितु जो पास होता है कभी-कभी उसे भी गँवाने की नौबत आ जाती है। एक लक्ष्य से सफलता संभव है। मनुष्य को अपने जीवन में सदैव एक लक्ष्य रखना चाहिए और उसे प्राप्त करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए तभी उस लक्ष्य की प्राप्ति संभव है। दो लक्ष्य की दुविधा में आदमी एकनिष्ठ होकर कर्तव्यनिष्ठ नहीं रह पाता है। जो व्यक्ति कभी किसी को अपना लक्ष्य बनाता है तो कभी किसी को, तो वह दुविधा में फँस जाता है कि आखिर किस लक्ष्य की ओर जाए। एक से अधिक लक्ष्य सामने होने पर वह अपना निश्चित लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाता है और प्रत्येक दिशा में प्रयत्न करता है जिससे उसकी कार्यशक्ति और विचार शक्ति दोनों पर प्रभाव पड़ता है। दुविधा से शक्तियों का बँटवारा होने का भय हमेशा बना रहता है। लक्ष्य प्राप्ति की दुविधा में वह भी असफलता रूपी नदी में डूब जाता है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यदि मानव एकाग्र होकर अपना एक लक्ष्य निर्धारित करके उसी दिशा में बढ़े तो उसे सफलता अवश्य मिलेगी और यह कहावत “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” कभी भी चरितार्थ नहीं होगी।