अनुच्छेद लेखन : जहाँ चाह वहाँ राह


जहाँ चाह वहाँ राह


एक प्रसिद्ध कहावत है- जहाँ चाह वहाँ राह। इसका तात्पर्य है जब मन में कोई इच्छा होती है, कुछ कर दिखाने की चाहत या अभिलाषा होती है उसके लिए रास्ते अपने आप बन जाया करते हैं। यदि व्यक्ति अपने मन में किसी लक्ष्य को पाने की ठान ले तो मार्ग की बड़ी से बड़ी बाधा उसे उसके पथ से विचलित नहीं कर सकती। सफलता पाने के लिए कर्म के प्रति रुचि और समर्पण की भावना होना परम आवश्यक है। जो लोग मन में केवल इच्छा तो रखते हैं किन्तु उसके पूरा करने के लिए न प्रयास करते हैं और न दृढ संकल्प ले कर कार्य के प्रति समर्पण भाव रखते हैं, वे अपने कार्य में कभी भी सफल नहीं हो पाते। कर्म के प्रति समर्पित लोग रास्ते की कठिनाइयों से नहीं घबराया करते। किसी प्रसिद्ध कवि ने कहा है-

जब नाव जल में छोड़ दी, तूफान ही में मोड़ दी
दे दी चुनौती सिन्धु को, फिर पार क्या मँझधार क्या ?

मार्ग में आने वाली बाधाएँ तो मनुष्य को चुनौती देती हैं, उसकी परीक्षा लेती हैं कि वह अपने कर्म के प्रति कितना निष्ठावान है! चुनौतियों के माध्यम से ही कर्म वीरों को कार्य पूरा करने की प्रेरणा मिलती है, इसलिए कठिनाइयों को मार्ग की बाधा न समझ कर उन्हें मार्ग निर्माण का साधन समझना चाहिए। यदि महात्मा गांधी अंग्रेजी शासन की चुनौती का सामना करते हुए सत्याग्रह के द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्ति का प्रयास न करते तो आज भी हम परतन्त्र होते। अतः हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए या किसी भी कार्य की पूर्ति के लिए प्रबल इच्छा शक्ति को मन में धारण करें और कठिन परिश्रम दृढ़ संकल्प और लगन के द्वारा उस लक्ष्य को पाने का प्रयास करें।