अनुच्छेद लेखन – आरक्षण : कितना उचित, कितना अनुचित
आरक्षण : कितना उचित, कितना अनुचित
भारतीय समाज में जातिगत रूप से ऊँच-नीच के भेदभाव की शुरूआत प्राचीनकाल से ही हो गई थी। अस्पृश्यता का भाव जब अधिक बढ़ गया तब इन लोगों का मंदिरों में प्रवेश वर्जित हुआ। इनके तीर्थ-स्थानों के भ्रमण पर रोक लगाई गई। कुओं से पानी नहीं भरने दिया जाता था। शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा से भी उन्हें वंचित रखा गया। समय बदला और परिस्थितियाँ भी बदलीं। स्वतंत्र भारत में इन्हें मताधिकार प्राप्त हुआ और ऐसे कानून बने जिनका फ़ायदा इन अस्पृश्य कहे जानेवाले लोगों को हुआ। इनके लिए विशेष आरक्षण की योजनाएँ बनाई गईं। शिक्षा प्राप्त करने की विशेष सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई गईं। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि उनके लिए नौकरियों में भी स्थान सुरक्षित रखे जाने लगे। जब कांग्रेस को हराने के बाद देश की बागडोर श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के हाथ में आई तो उन्होंने 15 अगस्त के दिन लाल किले की प्राचीर से पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी। अनुसूचित जातियों तथा जन-जातियों के लिए तो पहले से ही आरक्षण की सुविधाएँ थीं। मंडल कमीशन की सिफारिशों को सहमति देते हुए उन्होंने जो घोषणा की थी उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। जगह-जगह दंगे फसाद, आत्मदाह जैसी दिल को दहला देने वाली अनेक घटनाओं ने देश को सुर्खियों में ला दिया। राजनीतिक पार्टियों ने इस परिस्थति का बहुत फ़ायदा उठाया। छात्रों को यह कहकर कि आरक्षण की वजह से अब उन्हें नौकरियाँ नहीं मिल पाएँगी, उनके मन में विद्रोह की भावना भड़काई। स्थिति और भी अधिक भयावह हो गई। इस स्थिति पर नियंत्रण पाया गया, लेकिन समय निकलने के बाद। आरक्षण की यह माँग आज भी बरकरार है। पिछले दिनों गुज्जरों के द्वारा किए गए विद्रोह और प्रदर्शन ने राजस्थान की व्यवस्था को गड़बड़ा दिया था। सरकार के द्वारा उनके साथ बातचीत और निकाले गए रास्ते ने देश के शेष नौजवानों के मन में भी क्षोभ भर दिया। अब परिस्थितियाँ बदल रही हैं। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों को मिलने वाला आरक्षण आज उचित दिशा में जा रहा है, लेकिन प्रश्न आज उन लोगों का है, जिन्हें किसी प्रकार का आरक्षण प्राप्त नहीं है। वे काबिल होने के बाद भी बेहतर नौकरी पाने में असफल हैं। आज हमें एक ऐसा रास्ता निकालना होगा, जिससे देश के सभी युवाओं को समान अधिकार प्राप्त हों।