अनुच्छेद लेखन : आत्मनिर्भरता


आत्मनिर्भरता सफलता की कुंजी है। कोई भी देश, राज्य, समाज, परिवार या व्यक्ति अपना विकास तभी कर सकता है जब वह आत्मनिर्भर होगा। आत्मनिर्भरता का अर्थ है-अपने ऊपर निर्भर होना। शिक्षा और कर्म आत्मनिर्भरता के मूल आधार हैं। शिक्षा से विवेकशीलता आती है और कर्म से मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति जीवन का सच्चा सुख प्राप्त करता है और उसे दूसरों से सहायता नहीं माँगनी पड़ती। आत्मनिर्भर होने से स्वाभिमान विकसित होता है। परतंत्र व्यक्ति को अपनी आत्मा को दबाना पड़ता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति अपनी इच्छा का स्वामी होता है। इसलिए व्यक्ति को परिश्रम करके आत्मनिर्भर होना चाहिए। आधारभूत संरचनाओं का विकास, आय के नियमित साधन और स्वशासन किसी भी देश के लिए आत्मनिर्भरता के मूलतत्व हैं। शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था करना शासन का दायित्व है। आर्थिक विकास के लिए देशी संसाधनों का विकास करना आवश्यक होता है। हमारे देश का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो आत्मनिर्भर नहीं है। धर्म परिवर्तन का मामला भी वैसे क्षेत्रों में नजर आता है जहाँ लोग आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं और अशिक्षित हैं। देश में महिलाओं की स्थिति कमजोर है और वे अशिक्षित हैं। हमारा देश तब तक विकसित नहीं हो सकता, जब तक देश का प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भर नहीं होगा और विकास में समान रूप से भागीदार नहीं बनेगा।