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अनुच्छेद लेखन : अपहरण और मासूम बच्चे


अपहरण और मासूम बच्चे


आज भारत में अपहरण की घटनाएँ आम हो गई हैं। हर वर्ष इनकी बढ़ती संख्या हमें यह सोचने पर विवश कर रही है कि मानव अब मानवता को छोड़कर दानवता की ओर अग्रसर हो रहा है। छोटे-छोटे मासूम बच्चों को ढाल बनाकर पैसा कमाने की चाह आज उन्हें यह निकृत्य कर्म करने को विवश कर रही है। अपराध जगत आज इतना अधिक फैल रहा है कि राजनीति भी उसी में समाती जा रही है। अपहरण करने और करवाने वाले कुर्सियों के मालिक बन बैठे हैं। संसद में बैठकर देश को चलाने वाले ये अपराधी किसी से नहीं डरते। फ़िल्मों से प्रशिक्षण प्राप्त कर आम जनता को सताने वाले ये अपहरणकर्ता उन मासूम बच्चों के बारे में नहीं सोचते जो अपने जीवन में आए इन काले सायों को कभी भूल ही नहीं पाते। दिनों, हफ्तों, महीनों अपने परिवार के लोगों से दूर वे किस घुटन के साथ अपना समय बिताते हैं, यह कोई नहीं समझ पाता। ऐसे बच्चे भीतर से डरपोक हो जाते हैं। उनमें आत्मविश्वास का अभाव हो जाता है तथा ये एकांतवासी भी हो जाते हैं। बच्चों के साथ अन्याय करने वाले इन लोगों के लिए ऐसा कानून बनना चाहिए कि इस गलत काम को करने वाला उसके परिणाम के बारे में सोचकर काँप जाए। अपहरण को अपना व्यवसाय बनाने वाले लोगों को राजनीति से दूर रखा जाए। क्या हमारे देश में अच्छे नेताओं का अभाव हो गया है? राजनीति और न्यायालय जब तक ऐसे लोगों को शरण देती रहेगी तब तक हमारे बच्चे इस देश में सुरक्षित नहीं रहेंगे। हम यदि हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण चाहते हैं, तो हमें कोई ठोस कदम उठाने होंगे। वर्ना वह दिन दूर नहीं जब अपहरण की घटनाओं की संख्या बढ़कर आसमान छू लेगी।