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अनुच्छेद लेखन


लेख : परीक्षा से पहले मेरी मनोदशा


छात्र जीवन, जीवन का सबसे सुनहरा दौर होता है, जब बच्चे मौज़- मस्ती के साथ- साथ खूब मेहनत कर अपने जीवन को एक दिशा देने के लिए प्रयासरत रहते हैं। लेकिन छात्र जीवन में “परीक्षा” नाम के शब्द से सभी छात्रों को बहुत अधिक डर लगता है। क्योंकि इन्हीं परीक्षाओं के मूल्यांकन के आधार पर हमारे भविष्य की रूपरेखा तय होती है। इसलिए जैसे-जैसे परीक्षाएँ नजदीक आती हैं विद्यार्थियों के मन के अंदर का डर बढ़ता जाता है। परीक्षा का समय विद्यार्थियों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है। उनके परिश्रम की सफलता परीक्षा के परिणाम पर निर्भर करती है इसीलिए विद्यार्थियों पर उसका दबाव बढ़ जाता है। मेरी वार्षिक परीक्षा से पूर्व मेरी भी कुछ ऐसी ही मनोदशा थी। इस समय खेलकूद, टी.वी. और मनोरंजन को छोड़कर मेरा पूरा ध्यान केवल पढ़ाई पर केंद्रित था। मेरे माता-पिता भी इसमें मेरा पूरा सहयोग कर रहे थे। यद्यपि मेरी सभी विषयों की तैयारी बहुत अच्छी थी फिर भी मन में आशंका रहती थी कि कोई प्रश्न ऐसा न हो जिसे मैं हल न कर सकूँ। इसीलिए प्रथम परीक्षा के दिन मैंने अपने सहपाठियों से भी अधिक बात नहीं की। परीक्षा कक्ष में पहुँचकर मैंने ईश्वर का स्मरण करके अपने मन को एकाग्र किया। प्रश्न-पत्र हाथ में आते ही मेरा दिल तेजी से धकड़ने लगा, पर उसे देखते ही मैं खुशी से झूम उठी क्योंकि सभी प्रश्न मुझे बहुत अच्छी तरह आते थे। पूर्ण आत्मविश्वास और मनोयोग से मैं अपना प्रश्न पत्र हल करने लगी। मैंने लेख की सुन्दरता और स्पष्टता का विशेष ध्यान रखा। इस प्रकार मैंने अपना प्रश्न-पत्र निर्धारित समय से पूर्व ही हल कर लिया। तत्पश्चात मैंने अपने उत्तर क्रमानुसार दोहराए। समय की समाप्ति पर उत्तर पुस्तिका कक्ष-निरीक्षक को सौंप कर मैं परीक्षा कक्ष से बाहर आ गई। सभी विद्यार्थियों के चेहरे प्रश्न पत्र अच्छा होने की खुशी से चमक रहे थे। उस दिन मैंने यह अनुभव किया कि परीक्षा से पूर्व की गई अच्छी तैयारी हमारे मन में आत्मविश्वास भर देती है। परीक्षा से पूर्व जो मेरी मनोदशा थी उसके ठीक विपरीत अब मेरे मन में पेपर अच्छा होने की खुशी और सन्तोष था।