अकर्मक क्रिया, सकर्मक क्रिया
कोई भी वाक्य क्रिया के बिना पूर्ण नहीं होता। कर्म के आधार पर क्रिया के मुख्य दो भेद हैं-
(i) अकर्मक क्रिया (ii) सकर्मक क्रिया।
अकर्मक क्रिया- जिस क्रिया को कर्म की आवश्यकता न हो यानी जिस क्रिया के साथ कर्म न हो, वह अकर्मक क्रिया होती है। अकर्मक क्रिया के कार्य का फल उसके कर्ता पर ही पड़ता है।
जैसे – बच्चा सो गया।
बच्चे दौड़ रहे हैं।
अकर्मक क्रिया की पहचान
क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको आदि लगाकर प्रश्न पूछने पर यदि कोई उत्तर नहीं मिलता तो वह अकर्मक क्रिया होती है। जैसे –
वह हँसने लगा।
मुन्ना रो रहा है।
सकर्मक क्रिया – जिस क्रिया के कार्य का फल कर्म पर पड़ता है, वह सकर्मक क्रिया होती है। ‘सकर्मक’ का अर्थ ही है – कर्म के साथ। ऐसी क्रियाओं को सदा कर्म की अपेक्षा रहती है।
जैसे – सौरभ पतंग उड़ा रहा है।
कंचन ने चाय बनाई।
अब निम्नलिखित वाक्यों को ध्यान से पढ़िए।
* कुछ देर बाद उसी महल में एक दूसरा कुत्ता आया।
* उसको भी हज़ारों कुत्ते दिखाई दिए।
* वह डरा नहीं, प्यार से उसने अपनी दुम हिलाई।
ऊपर लिखे वाक्यों में ‘आया’ और ‘डरा’ अकर्मक क्रियाएं हैं।
ऊपर लिखे वाक्यों में ‘दिखाई दिए’ और ‘हिलाई’ सकर्मक क्रियाएँ हैं, इनका फल क्रमशः ‘कुत्ते’ और ‘दुम’ पर पड़ रहा है। ये दोनों इन क्रियाओं के कर्म हैं।