संसार में शिक्षक – शिक्षार्थी का संबंध बहुत ही पवित्र माना गया है। शिक्षार्थी ज्ञान के लिए शिक्षक के पास जाता है और शिक्षक उसे ज्ञानी बनाता है।
शिक्षक – शिक्षार्थी का संबंध आयु पर नहीं, अपितु ज्ञान वृद्धि पर आधारित होता है। भारत वर्ष में इन संबंधों की प्राचीन एवं सुदृढ़ परम्परा है।
आज ज्ञान के प्रसार के साधन बहुत बढ़ गए हैं। इससे शिक्षार्थियों का बौद्धिक स्तर भी बहुत बढ़ गया है, लेकिन आजकल अधिकतर मेधावी शिक्षार्थी शिक्षक बनना पसंद नहीं करते। आज के भौतिकतावादी समाज में ज्ञान से अधिक धन को महत्व दिया जाने लगा है।
अतः आज शिक्षण भी निःस्वार्थ नहीं रह कर, व्यवसाय बन गया है। शिक्षक और शिक्षार्थी का संबंध उपभोक्ता और सेवा प्रदाता के समान होता जा रहा है।
इससे शिक्षक के प्रति अगाध श्रद्धा और शिक्षक का शिक्षार्थी के प्रति स्नेह और संरक्षक भाव लुप्त होता जा रहा है।
शिक्षक और शिक्षार्थी के दोनों रूपों में हमारा कर्तव्य बनता है कि हम ज्ञान के महत्व को समझें और अपने दायित्व का निर्वाह करें।