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लघु कथा – ‘यदि मैं समाचार पत्र होता’


यदि मैं समाचार पत्र होता तो सुबह उठते ही लोग मेरे आने के इंतजार में उत्सुकता से मेरी प्रतीक्षा करते। चाय की चुस्कियों के साथ बड़े लोग जहाँ मेरी एक-एक खबर पर नज़र दौड़ाते तो बच्चे खेल की रोचक जानकारी, ‘बच्चों का कोना’ पर तथा महिलाएँ मुझमें दी गई व्यंजन बनाने की विधि जानने को बेताब दिखतीं। सबका प्यारा और लाड़ला मैं एक हाथ से दूसरे हाथ में घूमता। सबका प्यार पा मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता। लेकिन दिन ढलने के साथ ही सब प्यार भी खत्म हो जाता और मुझे रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता जो कि मुझे बिल्कुल न सुहाता। यदि मैं समाचार पत्र होता तो सरकार द्वारा चलायी जा रही जनकल्याण योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुँचाने का जरिया बनता तथा उनमें होने वाले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करता। मैं अपने पारंपरिक सफेद-काले रंग-रूप को त्यागकर, रंग-बिरंगा आकर्षक बन जाता। अपने चुटकलों से लोगों को गुदगुदाता। सभी आयु वर्ग के लिए उपयोगी होता। लोगों को शिक्षा, तकनीकी, रोजगार, विवाह, जमीन-जायदाद आदि अनेक प्रकार की जानकारी उपलब्ध कराता। इस प्रकार मैं लोगों को केवल खबर ही देने का जरिया ही नहीं वरन् उनके ज्ञानवर्धन, मनोरंजन का साधन भी बनता। मैं लोगों में जन-चेतना फैलाता। उनकी समस्याओं को प्रशासन तक पहुँचाने में सहायक होता। मेरी हमेशा यही इच्छा रहती कि सम्पादक किसी दबाब में आकर खबरों के साथ छेड़छाड़ न करें तथा न ही किसी के साथ पक्षपात करें वरन् सच्चाई को जनता के सामने लाएं। इस तरह मैं स्वयं को सार्थकता प्रदान करता ।

सीख – प्रत्येक व्यक्ति के लिए समाचार पत्र पढ़ना लाभदायक होता है।