रामावतार
बहुत पुरानी कथा है – श्री हरि के जय-विजय नाम के दो द्वारपाल थे। वे सनकादि ब्रह्मऋषियों के शाप से घोर निशाचर कुल में पैदा हुए। उनके नाम रावण और कुम्भकर्ण थे। उनके अत्याचारों से पृथ्वी कांप उठी। वह पाप के भार को सह न सकी।
अंत में वह ब्रह्मादि देवताओं के साथ भगवान की शरण में गई। देवताओं की प्रार्थना से परब्रह्म परमात्मा ने अयोध्या के राजा दशरथ की रानी कौशल्या के गर्भ से राम के रूप में अवतार लिया।
भगवान श्री राम ने विश्वामित्र के यज्ञ में विघ्न डालने वाले सुबाहु आदि राक्षसों को मार डाला। वे सब बड़े-बड़े राक्षसों की गिनती में थे।
जनकपुर में सीता जी का स्वयंवर हो रहा था। वहाँ भगवान शंकर का विशाल धनुष रखा हुआ था। श्री राम ने उस धनुष को तोड़ कर सीता जी को प्राप्त कर लिया।
राजा दशरथ की आज्ञा से श्री राम का चौदह वर्ष का वनवास हुआ। भगवान ने पिता की आज्ञा मान कर अपनी पत्नी के साथ वन की यात्रा की। उनके साथ छोटे भाई लक्ष्मण भी थे।
वन में पहुंच कर भगवान ने रावण की बहन सूर्पनखा को कुरूप कर दिया। क्योंकि उसकी बुद्धि काम-वासना के कारण अशुद्ध थी। उसके पक्षपाती खर, दूषण, त्रिशिरा आदि प्रधान-प्रधान भाईयों को श्री राम ने नष्ट कर डाला।
सूर्पनखा की दशा देख कर रावण बहुत क्रोधित हुआ। उसने भगवान से शत्रुता ठान ली। छल से सीता जी का हरण कर लिया। श्री राम सीता जी के वियोग में बहुत दुःखी हुए। वे अपनी प्राणप्रिया सीता जी से बिछुड़ कर अपने भाई लक्ष्मण के साथ वन-वन भटकने लगे।
भगवान ने जटायु का दाह-संस्कार किया। फिर कबन्ध का संहार किया। सुग्रीव आदि वानरों से मित्रता करके बाली का वध किया।
ततपश्चात हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गए। वहाँ सीता जी से मिले। उन्होंने राक्षसों को मारा और लंका को जला दिया। लौटते समय सीता जी से चूड़ामणि लेकर भगवान राम से मिले। अन्त में श्री राम बन्दरों की सेना के साथ समुद्र-तट पर जा पहुंचे।
भगवान श्री राम ने वानरों आदि की सहायता से समुद्र पर पुल बांधा। विभीषण की सलाह से भगवान ने नील, सुग्रीव, हनुमान आदि प्रमुख वीरों और वानरी सेना के साथ लंका में प्रवेश किया। दोनों ओर की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। भगवान राम विजयी हुए। शरणागत विभीषण को लंका का राजा बनाया।
उसके बाद भगवान श्री राम ने सीता जी और लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौट कर राम-राज्य की स्थापना की।
भगवान ने नरलीला करके प्राणिमात्र को प्रेम, नम्रता, सदाचार और माता-पिता-गुरु के प्रति आदर भाव का संदेश दिया।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को हम सब प्रणाम 🙏🙏 करते हैं।