मुहावरे और लोकोक्तियां
मुहावरे लोकमानस की चिर संचित अनुभूतियाँ हैं। इनके प्रयोग से भाषा में सजीवता आ जाती है। वस्तुतः मुहावरे भाषा के लिए संजीवनी बूटी हैं।
मुहावरों की तरह ही लोकोक्तियाँ भी लोक जीवन की सिद्ध अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हैं। इनमें भी वाचक अर्थ की अपेक्षा लक्ष्यार्थ की प्रमुखता रहती है। लोकोक्तियाँ लोक जीवन के व्यापक अनुभवों को सामान्य शब्दों के द्वारा व्यक्त करती हैं।