बात सीधी सी थी पर – सार
बात सीधी सी थी पर – कुंवर नारायण
सारांश
कवि के अनुसार बात सीधी पर अपनी विद्वता दिखाने ने कविता के लिए क्लिष्ट भाषा के फेर में वह किया है। बात या कविता या साहित्य इतना मुस्कान, कठिन हो जाता है कि मनुष्य की कविता उसमें रूचि समाप्त हो जाती है। कई साहित्यकार सहज बात को भी घुमा-फिराकर प्रस्तुत करते है जिससे बात का मूल अर्थ सी समाप्त हो जाता है। और बात की चूड़ी गिरते ही, उसे फिर बड़ी कील की भाँति ठोंक दिया जाता है। कवि ने इसमें केवल अपनी विद्वता प्रदर्शित करने वाले साहित्यकारों पर व्यंग्य किया है।