जीवन भी बाँसुरी की भांति है। अपने में खाली और शून्य, पर साथ ही संगीत की अपरिसीम सामर्थ्य भी उसमें है। पर सबकुछ बजाने वाले पर निर्भर है। जीवन वैसा ही हो जाता है, जैसा व्यक्ति उसे बनाता है। वह अपना ही निर्माण है। यह तो एक अवसर मात्र है – कैसा गीत कोई गाना चाहता है, यह पूरी तरह से उसके हाथों में है। मनुष्य की महिमा यही है कि वह स्वर्ग और नरक दोनों के गीत गाने को स्वतंत्र है।