निबंध लेखन : रंगों का त्यौहार होली
रंगों का त्यौहार होली
प्रस्तावना – भारत एक ऐसा देश है, जहाँ अनेक संस्कृतियाँ पनपीं, अनेक सभ्यताएँ आईं और चली गईं तथा अनेक धर्मों के लोग आए और यहीं बस गए। इसी कारण इस धरा पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं। हिंदुओं के अनेक त्यौहारों में होली को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
वसंत ऋतु का संदेशवाहक – वसंत ऋतु का संदेशवाहक बनकर रंगों का त्यौहारों होली आता है। मानव मात्र के साथ-साथ प्रकृति भी अपने रंग-ढंग दिखाने में कोई कमी नहीं रखती। चहुँ ओर प्रकृति के रूप और सौंदर्य के ही गुणगान होते हैं। पुष्पवाटिका में कोयल की मीठी तान सुनने से मन नृत्य कर उठता है। ऋतुराज का स्वागत बड़ी शान से संपन्न होता है। सब लोग बागों में जाकर रंग खेलते हैं और आनंद मनाते हैं।
त्यौहार मनाने का समय – यह त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और अगले दिन (चैत प्रतिपदा को) धूलेंडी होती है, जिसमें रंग-गुलाल आदि लगाए जाते हैं। सर्दी को विदा और गर्मी का स्वागत करने के लिए यह त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण – भारत के प्रत्येक त्यौहार का संबंध किसी-न-किसी धार्मिक परंपरा अथवा सांस्कृतिक घटना से जुड़ा होता है। होली का त्योहार भी अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है। प्राचीन समय में दैत्यराज हिरण्यकशिपु नास्तिक विचारों का राजा था। इसके विपरीत उसका पुत्र प्रह्लाद बाल्यावस्था में ही ईश्वर का परम भक्त हो गया। प्रहलाद को ईश्वर भक्ति से विरक्त करने के लिए तरह-तरह की यातनाएँ दी किंतु उसका बाल भी बाँका न हो सका। होलिका दैत्यराज हिरण्यकशिपु की बहन थी, जिसे वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। अत: होलिका अपने भाई दैत्यराज हिरण्यकशिपु के कहने पर प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती आग में बैठ गई। भक्त प्रह्लाद को तो किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुँची; किंतु होलिका जलती आग में भस्म हो गई। इसीलिए लोग होली जलाते हैं।
मनाने की विधि – होली रंगों और उमंगों का त्यौहार है। होली के दिन लकड़ियों का बहुत बड़ा ढेर लगाया जाता है। गाँवों में उपलों का भी ढेर लगाया जाता है। संध्या समय होली का पूजन होता है। रात्रि को विशेष मुहूर्त में होलिका-दहन होता है। इस समय लोग गेहूँ और जौ की बालियाँ होली में भूनते हैं तथा आपस में बाँटते हैं। छोटी उम्र के लोग अपने वृद्धजनों से शुभाशीष ग्रहण करते हैं।
अगले दिन फाग मनाया जाता है। इस दिन क्या धनी, क्या निर्धन, क्या शिक्षित, क्या अशिक्षित, क्या छोटे, क्या बड़े, सभी एक-दूसरे पर रंग और गुलाल डालते हैं। बच्चे पिचकारियों और गुब्बारों में रंग भरकर डालते हैं। दोपहर को लगभग एक बजे तक फाग खेला जाता है। लोग एक-दूसरे के गले मिलते हैं। टोलियों के रूप में गीत गाते, बाजे बजाते, ढोल बजाते और नाचते-कूदते निकल पड़ते हैं तथा आपसी भेदभाव को भुलाकर, मिलकर आनंद मनाते हैं। इस दिन राजा और प्रजा सब एक हो जाते हैं। वृंदावन में होली का उत्सव और भी मधुर होता है। वहाँ रासलीलाएँ होती हैं। दूर-दूर से लोग ब्रज की होली देखने के लिए आते हैं।
कुरीतियाँ – आजकल इस रंगों के त्यौहार होली में फाग के समय कुछ लोग दूसरों पर कीचड़ फेंकते हैं, उनके कपड़े फाड़ देते हैं कुछ लोग रंगों के स्थान पर तारकोल, पेंट आदि लगाते हैं और बच्चे गुब्बारों में रंग भरकर एक-दूसरे पर फेंकते हैं, जिससे कभी-कभी कटुता का वातावरण बन जाता है और इससे शत्रुता आरंभ हो जाती है। अतः हमारा कर्तव्य है कि इस दिन को पवित्रता, भाईचारे एवं मेल-जोल से मनाएँ ।
उपसंहार – प्रत्येक पर्व का अपना-अपना महत्त्व होता है। होली का त्यौहार प्रेम, सद्भावना, हेल-मेल आदि का प्रतीक है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि हम होली के पर्व की वही पवित्रता बनाए रखें। सांप्रदायिक सद्भाव लाने में भी यह त्यौहार एक महत्त्वपूर्ण अवसर सिद्ध हो सकता है। अतः हम होली के दिन अपनी विषमताओं, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, कटुता और वैमनस्य को त्यागकर उसे होली की अग्नि में जलाकर एक-दूसरे को गुलाल अथवा चंदन का टीका लगाकर गले मिलें और इसकी महत्ता को बढ़ाएँ।