देवी महालक्ष्मी का अवतरण
एक बार देवताओं पर जब बहुत बड़ा संकट आया तो उन्होंने एक स्त्री को सेनापति बनाया और तब ही यह बात तय हो चुकी थी कि स्त्री के पास ऐसी शक्ति है कि वह किसी भी सेना का नेतृत्व कर सकती है।
सचमुच कुछ ऐसे पराक्रम हैं कि पुरुष चाहकर भी नहीं कर सकता।
महिषासुर नामक राक्षस यह वरदान प्राप्त कर चुका था कि उसे कोई स्त्री ही मार सकेगी। ब्रह्मा – विष्णु – महेश ने उससे युद्ध भी किया और हारना पड़ा।
तब देवताओं ने तय किया कि विष्णु जी से सलाह ली जाए। विष्णु जी ने सलाह दी कि हम लोगों की जो समवेत शक्ति है, उसके अंश से कोई देवी प्रकट हो, वही उसे मार सकेगी।
शंकर के तेज से उस देवी का मुंह बना, यमराज के तेज से बाल, अग्नि ने तीन नेत्र दिए, सुंदर भौंहें सन्ध्या के तेज से बनी। वायु ने कान, कुबेर ने नासिका दी। प्रजापति से दाँत मिले, इन्द्र ने मध्य भाग, पृथ्वी ने नितंब वाला भाग दिया। विष्णु ने चक्र सौंपे, शंकर ने त्रिशूल दिया, यमराज ने कालदण्ड और ब्रह्मा ने गंगाजल दिया।
इस प्रकार महालक्ष्मी तैयार हुई और उनके हाथों महिषासुर मारा गया।
इसलिए यह सोच, यह भ्रम कि स्त्रियाँ पुरूष की तरह पराक्रम नहीं कर सकती, बेमानी है।
इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि स्त्री व पुरूष की शक्ति एक समान है। यह भी सच है कि दोनों के लिए उपयोगिता और क्षेत्र अलग हो सकते हैं।