काव्यांश – हम सब हिंदुस्तानी
निम्नलिखित काव्यांश ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
आओ, हम सब अब हिंदुस्तानी ही रह जाएँ!
पहले एक साथ चलकर समंदर में
हम अपनी-अपनी जातियाँ धो आएँ,
और तोड़ दें अपने-अपने प्रांतों की सीमाएँ
जिससे बंगाली, गुजराती, मराठी, मद्रासी आदि हमारी सारी संज्ञाएँ मिट जाएँ
और हम सब केवल हिंदुस्तानी ही रह जाएँ!
हममें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई भी अब कोई न रहे,
हममें हर आदमी अपना धर्म अब बस एक ही कहे
और बस एक ही मंदिर हो हमारा –
यह देश,
चाहो तो उसे मस्जिद कहो, गिरजा या गुरुद्वारा,
जिसकी रक्षा में हम जिएँ या मर जाएँ!
आओ, हम सब अब हिंदुस्तानी ही रह जाएँ!
प्रश्न 1. समुद्र में जातियाँ धोकर आने से कवि का क्या आशय है?
प्रश्न 2. आशय समझाइए – ‘बस एक ही मंदिर हो हमारा।’
प्रश्न 3. हमारी अलग-अलग पहचानें क्या हैं? उन्हें एक में कैसे समेटा जा सकता है?