अपठित गद्यांश : विकास
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर लिखिए-
‘विकास’ का सवाल आज विमर्श के केन्द्र में है। आधुनिकता के प्रतिफल के रूप में प्रकट हुई ‘विकास’ की अवधारणा के बारे में लोगों का विश्वास था कि विकास की यह अद्भुत घटना आधुनिक मनुष्य को अभाव, समाज और प्रकृति की दासता एवं जीवन को विकृत करने वाली शक्तियों से मुक्ति दिला देगी। लेकिन आधुनिक विकास के जो स्वप्न देखे थे उसके अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आए। इसके फलस्वरूप लोगों का मन वैकल्पिक उपायों के बारे में सोचने लगा है। इस क्रम में हमें बरबस कुमारप्पा के विचार याद आते हैं जिन्होंने इस बात को मज़बूती के साथ रखा है कि विकास की जो गांधीवादी अवधारणा है वही सार्थक एवं टिकाऊ है।
जे. सी. कुमारप्पा का आर्थिक दर्शन व्यापक और मौलिक है। कुमारप्पा का आर्थिक चिंतन गांधीवादी अहिंसा पद्धति पर आधारित होने के कारण व्यक्ति की स्वतन्त्रता, सृजनशीलता तथा दैनिक काम से उसके स्वस्थ सम्बन्ध को महत्त्वपूर्ण मानता है। कुमारप्पा के अनुसार किसी के दैनिक कामों में ही उसके सभी आदर्श, सिद्धान्त और धर्म प्रकट हो जाते हैं। यदि उचित रीति पर काम किया जाए तो वही काम मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास का रूप बन जाता है। कुमारप्पा बढ़ते हुए श्रम विभाजन के सन्दर्भ में लिखते हैं- “चीज़ों के बनाने की पद्धति में केन्द्रीकरण के अन्तर्गत जो श्रम विभाजन होता है जो कि स्टैंडर्ड माल तैयार करने के लिए आवश्यक है, उसमें व्यक्तिगत कारीगरी दिखाने का कोई अवसर नहीं मिलता। केन्द्रित उद्योग में काम करने वाला उस बड़ी मशीन का एक पुर्ज़ा भर बनकर रह जाता है। उसकी स्वतन्त्रता और उसका व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है।”
कुमारप्पा के ये विचार आज के स्वयंचलित मशीन आधारित महाकाय उद्योगों में कार्यरत मज़दूरों के जीवन का प्रत्यक्ष अध्ययन करने पर उन विचारों की सत्यता को सिद्ध करते हैं। आज इस बात को लेकर कोई दो राय नहीं हैं कि केन्द्रीय उत्पादन व्यवस्था, अपने दुर्गुणों से छुटकारा नहीं पा सकती। वह और भयावह तब बन जाती है जब वह “आवश्यकता के अनुसार उत्पादन” के बजाए “बाज़ार के लिए उत्पादन” पर ध्यान केन्द्रित करती है। बेतहाशा उत्पादन बाज़ार की तलाश करने के लिए विवश होता है तथा उसका अंत गला काट परस्पर होड़ तथा युद्ध, उपनिवेशवाद इत्यादि में होता है। कुमारप्पा उपरोक्त तथ्यों को भली भाँति परख चुके थे तथा स्थाई स्रोतों के दोहन पर ध्यान देने तथा उन्हें विकसित करने पर ज़ोर देते रहे। कुमारप्पा ‘विकास’ की जिस अवधारणा की बात करते हैं, उसके केन्द्र में प्रकृति एवं मनुष्य है। मनुष्य की सुप्त शक्तियों के विकास के लिए अनुकूल वातावरण निर्माण करना ही सच्चे विकास का उद्देश्य है।
प्रश्न. अवतरण के अनुसार ‘विकास’ किसका प्रतिफल है?
प्रश्न. विकास के फलस्वरूप क्या परिवर्तन हुआ?
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
कथन (I) कुमारप्पा में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के समर्थक हैं
कथन (II) कुमारप्पा में वैश्वीकरण एवं निजीकरण के समर्थक हैं
कथन (III) कुमारप्पा में नए उद्यमों से औद्योगिक आत्मनिर्भरता बढ़ती है।
कथन (IV) कुमारप्पा में नए उद्यमों से निर्धनता बढ़ती है
गद्यांश के अनुसार कौन-सा/से कथन सही है/हैं-
(क) केवल कथन (II) सही है
(ख) केवल कथन (III) सही हैं
(ग) केवल कथन (IV) सही है
(घ) केवल कथन (I) सही है
प्रश्न. अवतरण के अनुसार विकास की प्रक्रिया कैसी होनी चाहिए?
प्रश्न. अवतरण के अनुसार केन्द्रीकत श्रम प्रणाली से क्या होता है?
प्रश्न. अवतरण के अनुसार केन्द्रीकृत श्रम प्रणाली से क्या होता है?
प्रश्न. कुमारप्पा के अनुसार व्यक्ति के दैनिक कार्यों के विषय में सत्य कथन कौन-सा है?
प्रश्न. विकास के वैकल्पिक उपायों के बारे में चिंतन क्यों आरम्भ हुआ?
प्रश्न. केन्द्रीय उत्पादन व्यवस्था के विषय में क्या असत्य है?
प्रश्न. केन्द्रीय उत्पादन व्यवस्था के विषय में क्या असत्य है?
प्रश्न. अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता का क्या परिणाम होगा?
प्रश्न. कुमारप्पा के अनुसार शाश्वत विकास का लक्ष्य क्या है?