अपठित गद्यांश : अपने खर्राटों से……….. तुम लौट जाओ।
तुम कब जाओगे, अतिथि : शरद जोशी
अपने खर्राटों से एक और रात गुंजायमान करने के बाद कल जो किरण तुम्हारे बिस्तर पर आएगी, वह तुम्हारे यहाँ आगमन के बाद पाँचवें सूर्य की परिचित किरण होगी। आशा है, वह तुम्हें चूमेगी और तुम घर लौटने का सम्मानपूर्ण निर्णय ले लोगे। मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी। उसके बाद मैं स्टैंड नहीं कर सकूँगा और लड़खड़ा जाऊँगा। मेरे अतिथि, मैं जानता हूँ कि अतिथि देवता होता है, पर आखिर मैं भी मनुष्य हूँ। मैं कोई तुम्हारी तरह देवता नहीं। एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते। देवता दर्शन देकर लौट जाता है। तुम लौट जाओ अतिथि। इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा। यह मनुष्य अपनी वाली पर उतरे, उसके पूर्व तुम लौट जाओ!
प्रश्न (क) लेखक ने खर्राटों का प्रसंग क्यों उठाया है?
उत्तर : लेखक खर्राटों का प्रसंग उठाकर यह कहना चाहता है कि उसके घर आया हुआ मेहमान बड़े आराम से मजे लूट रहा है। उसे घर जाने की चिंता नहीं है। वह मानो इसे अपना घर मानकर यहीं बस गया है।
प्रश्न (ख) ‘एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रहते’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : देवता थोड़े समय के लिए दर्शन देकर चले जाते हैं। मनुष्य उनका सम्मान करते हैं। मनुष्य अधिक देर तक देवता को झेल नहीं पाता। इसी प्रकार अतिथि भी थोड़े समय के लिए ही तो अच्छा लगता है।
प्रश्न (ग) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
उत्तर : पाठ-तुम कब जाओगे, अतिथि,
लेखक-शरद जोशी।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न (क) अतिथि के आगमन का कौन-सा दिन लेखक की सहनशीलता का अंतिम दिन होगा?
(i) दूसरा दिन
(ii) तीसरा दिन
(iii) चौथा दिन
(iv) पाँचवाँ दिन
प्रश्न (ख) अतिथि द्वारा लेखक के घर पर खर्राटे मारकर सोना दर्शाता है कि-
(i) अतिथि लेखक के घर पर बड़े मजे से रह रहा है।
(ii) लेखक को अतिथि के यहाँ रहने से परेशानी हो रही है।
(iii) लेखक को अतिथि के यहाँ रहने से कोई परेशानी नहीं हो रही है।
(iv) अतिथि को लेखक के घर पर अच्छी नींद आती है।
प्रश्न (ग) देवता और मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रहते हैं, क्योंकि-
(i) देवता मनुष्य को अधिक समय तक झेल नहीं पाते हैं।
(ii) मनुष्य की सहनशक्ति अधिक होती है।
(iii) देवता दर्शन देकर वापस लौट जाते हैं।
(iv) मनुष्य देवता का सम्मान नहीं करते हैं।
प्रश्न (घ) अतिथि का देवत्व किसमें सुरक्षित है?
(i) जल्दी लौट जाने में
(ii) लेखक की बात मानने में
(iii) जल्दी दर्शन देने में
(iv) लेखक के साथ शांत भाव से रहने में