अनुच्छेद लेखन : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
“वह जीव ही नहीं जिसमें प्रेम की भावना नहीं, मनुष्य तो हो ही नहीं सकता।” ऐसे विचार किसी महात्मा के हैं। ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् माता तथा मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है, इस भावना को अपनाकर जो व्यक्ति देश की रक्षा में अपनी जान कुर्बान कर देता है वह अमर हो जाता है। अपने देश की रक्षा के लिए तन, मन, धन सर्वस्व न्योछावर करने वाले अपनी मातृभूमि के सच्चे सपूत हैं।
देश की आज़ादी और मातृभूमि की रक्षा के लिए जो स्वाभिमानपूर्वक अपने प्राणों को न्योछावर करते हैं, ऐसे लोग ही सच्चे शहीद कहलाते हैं। साधारण मौत और शहीदी मौत में बड़ा अंतर है। एक तो मरकर मिट जाते हैं और दूसरे मरकर अमर हो जाते हैं। साधारण मनुष्यों का जीवन संसार की भाग-दौड़ में ही खप जाता है, पर भाग्यशाली हैं वे लोग जो देश और समाज के काम आते हैं। सामान्य जीवन तो एक निर्बंध फूल-सा है जो उगता है और धूल में मिल जाता है, पर शहीद का जीवन एक ऐसा सुगंधित फूल है, जिसकी सुगंध सदियों तक देश के चमन को महकाती रहती है। शहीदों के प्रति कवि के ये भावपुष्प अर्पित हैं :
‘मुझे तोड़ लेना वनमाली! उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक।’