CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)Class 9 HindiEducationअनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

अनुच्छेद लेखन : परिश्रम का महत्व


ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में मनुष्य नहीं लाया,

उसने अपना सुख अपने ही भुजबल से पाया।

भाग्य और कर्म मनुष्य के जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू हैं। मनुष्य जीवन कष्टों एवं बाधाओं से परिपूर्ण है। जिसमें परिश्रम का अत्यंत महत्व है-

“उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः

न हि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगाः।”

भाग्य परिवर्तन के लिए परिश्रम ही एकमात्र सहारा है। केवल इच्छाओं द्वारा मनवांछित फल की प्राप्ति असंभव है। यदि व्यक्ति दिवास्वप्न ही देखता रहे, समुद्र के किनारे हाथ पर हाथ धर कर बैठा रहे तो कोई लाभ न होगा। परिश्रमी व्यक्ति ही गोता लगाकर अतुल्य धन-संपत्ति पा सकता है। साहिर लुधियानवी के शब्दों में भी

“मेहनत अपने लेख की रेखा,

मेहनत से क्या डरना,

कल गैरों की खातिर की

आज अपनी खातिर करना।”

‘परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।’ यह मनुष्य को स्वावलंबी एवं स्वाभिमानी बनाती है। मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों का भी दृढ़तापूर्वक सामना करने को तैयार हो जाता है। चींटी भी दस बार दीवार पर चढ़ती है, अंततः अपने गंतव्य पर पहुँचकर ही दम लेती है, फिर मनुष्य तो ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है। ऐसे परिश्रमी व्यक्तियों के दृष्टांतों से इतिहास भरा पड़ा है। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर सतत प्रयत्न करते रहना चाहिए केवल भाग्य के भरोसे बैठे नहीं रहना चाहिए। गाँधी जी ने भी कहा है-ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। जो बिना परिश्रम किए भोजन करता है वह चोरी करता है। नेहरू जी का भी वक्तव्य है-‘आराम हराम है।’ परिश्रम रूपी मूल मंत्र को हमें अपने जीवन में उतार लेना चाहिए। आलस्य का चोगा उतार फेंकना चाहिए और जी-जान से अपने कर्तव्यों के निर्वाह में जुट जाना चाहिए। परिश्रम वह कामधेनु है जिससे हमारी आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ पूर्ण हो सकती हैं।

अतः कहना उचित ही होगा-

श्रम ही सो सब मिलता है,

श्रम बिनु मिलै न काहि।