अनुच्छेद लेखन – दहेज : एक समस्या
दहेज : एक समस्या
दहेज एक विकट समस्या है। आज दहेज एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है। आज का विवाह दो परिवारों को जोड़ता नहीं बल्कि सौदेबाजी का व्यापार बन गया है। सौदा होने पर भी वर पक्ष का लालची मन जब सौदे के पुनरावलोकन पर जिद करता हैं तो दहेज ‘प्रबल समस्या’ बन जाता है। गरीब कन्याएँ तथा उनके माता-पिता दहेज के नाम से भी घबराते हैं। परिणामस्वरूप उनके जीवन में अशांति, भय और उदासी घर कर जाती है। माँ-बाप बच्चों का पेट काटकर पैसे बचाने लग जाते हैं। यहाँ तक कि वे रिश्वत, गबन जैसे अनैतिक कार्य करने से भी नहीं चूकते। दूसरी ओर दहेज के लालच में बहुओं को परेशान किया जाता है। माँग पूरी न होने पर वधू को बेतहाशा मारना पीटना, उसका अंग-भंग कर देना आज शिक्षित, सभ्य समाज में भी बेरहमी से चलता है। यदि बहू शारीरिक कष्ट और मानसिक पीड़ा देने पर भी दहेज पूरा न कर सकी, तो मिट्टी का तेल छिड़ककर, स्टोव फटने का बहाना बनाकर उसे अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है। दहेज की समस्या के समाधान के लिए कानून भी बने। दो-चार परिवार पुलिस की ज्यादतियों और अदालतों के निर्णयों से दंडित भी हुए, पर इससे क्या? आज भी दहेज की समस्या कानून की खिल्ली उड़ाते हुए पूरे देश में महामारी की तरह फैल रही है। इस समस्या के अलग – अलग समाधान हैं –
1. प्रेम-विवाह, जहाँ दुल्हन ही दहेज के रूप में स्वीकार की जाती है।
2. विवाह संबंधों की पवित्र भावना अर्थात् जो पुत्री का पिता स्वेच्छा से दे, वह दहेज स्वीकार करने की उदारता।
3. बेटियों को शिक्षित करना एवम् आत्मनिर्भर बनाना।